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March 10, 2025

क्या सचमुच आजाद हुए है हम?

आज १५ अगस्त है। हमारे देश को आजाद हुए पुरे ७१ वर्ष हो गए। पुरा हिंदुस्तान आजादी का जश्न मना रहा है। जगह-जगह तिरंगा फहराया जाएगा। देशभक्ति के गीत गाए जाएंगे। चारो और हरा और केसरिया रंग फैला नजर आएगा। दफ्तरों, स्कूलो में छुट्टी और टेलिविजन पर देशभक्ति से ओत-पोत कार्यक्रमो और फिल्मों की भरमार होगी। हर चौराहे और सरकारी दफ्तरों पर तिरंगे को बडी शान से लहराया जाएगा। लाल किले से हमारे प्रधानमंत्री देश के नाम संदेश देगे और फिर शाम होते ही उसी शान से फहराते तिरंगे को उतार कर बडी हिफाजत के साथ रख दिया जाएगा। नेताजी ध्वजारोहन के बाद अपनी आवभगत से खुश चैन की नींद सो जाएँगे। जनता जनार्दन फिर अपनी दो वक्त की रोटी के जुगाड में लग जाएगी और अपनी उपरी कमाई कहाँ से की जाए इस उधेडबुन में पड जाएगी। देश और देशभक्ति कही हाशिये पर चले जाएगे और मैं मेरा के फेरे मे एक बार फिर उलझ कर रह जाएंगे हम सब।
क्या कभी बैठ कर सोचा है आपने की आजादी का क्या मतलब होता है? क्या आप मानते है, की हम सचमुच आजाद हुए है या हम एक आजाद देश के आजाद नागरिक है, दरअसल ये अधूरा सच है कि हमारा देश आजाद हुआ है। सिर्फ हमारा देश आजाद हुआ है, हम नही। हम आज भी बैखौफ होकर घर से बाहर नही निकल पाते। एक नौकरी शुदा को हमेशा ये डर रहता है की न जाने कब भाई – भतीजावद के चलते उसकी नौकरी पर बन आए। एक व्यवसायी को हमेशा ये डर सताता रहता है की न जाने कब सरकार की कोई नीति उनपर गाज बन कर गिर जाए। एक आम गृहणी बढती महँगाई के चलते-अपने बनते-बिगडते बजेट को लेकर परेशान है। देश में महिलाओंके खिलाफ बढते व्यभिचार के कारण घर से बाहर निकलने में लोग डरते है। एक माँ को चैन नही आता यदी उसकी बेटी कॉलेज से वक्त पर घर न पहुँच जाए। और तो और आज लोग इस हद तक गिर चुके है कि प्री-स्कुल जाने वाली मासुम बच्ची की माँ उसे एक पल भी अपनी आँखों से ओझल नही होने देती। उसे भी हमेशा खौफ रहता है की कही किसी नरपिशाच की गिध्द दृष्टी उसकी मासूम बच्ची को नोच न ले। देश में न्याय कौडीयों के भाव बिकने लगा है। रक्षक ही भक्षक बन बैठे है। महँगाई, भ्रष्टाचार, आंतक की फरियाद किसे सुनाईये, जब तारक ही संहारक बन बैठे है। उँची कुर्सियों पर बैठे लोग उस उँचाई से जनता की आवाज सुन ही नहीं सकते। देश में होने वाले सारे दंगे-फसाद, जाति-धर्म की हिंसा सब सत्तालोलुप लोगो के खुराफाती दिमाग की उपज है ताकि बंदरो की लडाई में बिल्ली रोटी ले भागे। भीडतंत्र ने लोकतंत्र को निगल लिया है। और हम आज भी अपनी आजादी का जश्न मना रहे है। हमने देश को अंग्रेजो की गुलामी से तो आजाद करवा लिया परंतु हम आज भी गुलाम है। देश की रक्षा के लिए विकट परिस्थितीयों में सरहद पर तैनात वीर सैनिक का परिवार जीवन की मूलभूत जरुरतों से महरुम है और देश को अपनी जागीर समझने वाले सत्ताधारी अपने महलो मे चैन की नींद सोते है। ये आजादी नही है।
हमारा देश तभी आजाद होगा जब हर एक देशवासी आजादी महसूस करेगा। जिस दिन हमारी बेटीयाँ बैखौफ होकर घर से बाहर कदम रख सकेगी और मुस्कुराती हुई शाम को पर लौटेगी। जिस दिन हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आजादी होगी, जिस दिन हर भारतीय को न्यायव्यवस्था पर यकीन होगा, जिस दिन हर घर में दो वक़्त की रोटी का जुगाड हो जाएगा, जिस दिन हिंदू और मुस्लिम मिलकर राजनीतिज्ञों के बोए गए धर्म और जाति के हिंसात्मक पौधे को उखाड कर उनकी हर चाल को नाकाम कर देगें, उस दिन सही मायनों में हमारा देश आजाद होगा। आइये मिलकर ये प्रण ले कि हम अपने देश को फिर सोने की चिडीया का दर्जा दिलाएंगे और इस धरा को फिर से सुजलाम्-सुफलाम् बनाएँगे।

वंदे मातरम्

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